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lirik lagu the local train – gustaakh

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वो ग़ुमनाम मिला यहाँ कहता रहनुमा
क्यूं रूकते कदम यहाँ रस्ते बेशुमार
मिलते हैं जो गुलिस्तां चंद रोज़

चलता चल तू, गिन के अब निशान

क्यूं सुनते रहे फिर वही दास्तान?
कह कुछ तू नया यहाँ, चूप क्यूं रहनुमा?
चंद रिवाज़ों से लिखता है तक़दीर
उस बुज़दिल पे हँसता है आसमां

गुस्ताख़ है
जो कल में जीया है
पूछो उसे
क्या हसती है, क्या पहचान है
फिरदौस क्या, एक था?

गुस्ताख़ है
जो कल में जीया है
पूछो उसे
क्या हसती है, क्या पहचान है
फिरदौस क्या, एक था?


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