lirik lagu munawar faruqui & farhan khan – khamoshi
[munawar faruqui & farhan khan “khamoshi” के बोल]
[pre~chorus: munawar faruqui]
कुछ तो तू भी कह दे, ख़ामोशी तेरी आती है तूफ़ान ले के
कश्ती को किनारे दे, डूबा दे या फिर तू मुझे तेरी पनाह में ले के।
[chorus: farhan khan]
जो लौटेगी तो इंतज़ार देदे, रातें कटती नहीं, दिन भी इम्तिहान लेते
ये मेरे हाल~ए~दिल की तुझे ज़िम्मेदार कहते
ये बेख़बर मैं ज़िंदा हूँ तेरे ही आसरे पे
[verse 1: munawar faruqui]
फासलों से यह मोहब्बत कभी कम ना होगी
लूटा दूं खुद को वादों पे तो फिर कसर क्या होगी?
असर ना होगी कोई दवा भी मुझ दीवाने पे, गवाह हैं रातें तेरे बिन जो अब बशर ना होगी
बारिशों में अब मैं झूमूं कैसे?
बसा तू आँखों में, तो आँखों को मैं किसे चूमूं कैसे?
हाथ कांपे मेरे, छू लूं कैसे?
सब्र जो सीखे तुझसे, उनको अब मैं भूलूं कैसे?
जलते हैं आशिक़ जब जाके बनता है काजल तेरा
दिल ये दफ़न कफ़न बना लिया है आँचल तेरा
रोता है बादल, रूठा बैठा मुझसे सावन मेरा
ज़ुल्फ़ों को छूना चाहता फिर से, तेरी पागल केहरा
तू बहती नदी सी, हूँ रुका हुआ मैं
है तू मुकम्मल सी, और टूटा हुआ मैं
ना तेरे आगे कोई वजूद है मेरा
खज़ाने सी है तू, लूटा हुआ मैं
वो ग़म भुलाने को देते शराब खोल के
पर पीना तेरे हाथ से, तू दे ज़हर को खोल के
क्यों हिचकियाँ? क्यों यादें? क्यों चेहरा ना भूल पाते?
मुझे दे निजात ऐसी, मेरी रूह जिस्म को छोड़ दे
करवटो का हिसाब करके बैठा
मैं राजदार, राज तेरे हूँ छुपा के रहता
ना गर्ज़ है मुझे किसी की परछाई की
मैं बाद तेरे ख़ुद के सायों से जुदा हूँ रहता, कुछ तो कह जा
[pre~chorus: munawar faruqui]
कुछ तो तू भी कह दे, ख़ामोशी तेरी आती है तूफ़ान ले के
कश्ती को किनारे दे, डूबा दे या फिर तू मुझे तेरी पनाह में ले के।
[chorus: farhan khan]
जो लौटेगी तो इंतज़ार देदे, रातें कटती नहीं, दिन भी इम्तिहान लेते
ये मेरे हाल~ए~दिल की तुझे ज़िम्मेदार कहते
ये बेख़बर मैं ज़िंदा हूँ तेरे ही आसरे पे
[verse 2: farhan khan]
अब सीने में साँसें कम, आँखें नम, माहौल उदासी का
लगाया गले बाहें तेरी, बनी फंदा फाँसी का
मोहब्बत मेरी पाकीज़ा, कर दी तुझपे थी जान निसार
फिर दफ़न किया तूने खड़ी करके बीच में ये दीवार
दे देदे दीदार, मैं हूँ तरसा बैठा
मैं बंदा तेरा ख़ुदा, मुझसे अब ये पर्दा कैसा?
मुनाफ़ा छोड़, मोहब्बत का मुझसे कर्ज़ा दे जा
मैं कर्ज़ा लेकर तुझसे, तेरा ही हूँ सद्का देता
हवाएं जानती हैं, साँसें तेरे नाम की
लौटेगा तू ज़रूर, तभी साँसें अपनी थाम ली
चेहरा नूरानी आफरीन, हटती तुझसे थी साँख नहीं
अंधेरा चारों ओर, ज़िंदगी में जो तू पास नहीं है
किताबों से बातें करूँ मैं, तेरा नाम लेके
बदले में आते ना कुछ जवाब, लिखे वो पन्ने फिर फाड़ देते
आसान ना इश्क़ अब, ये सब मेरी मिसाल देते
दरिया तू, मैं डूबा तू, आँखों में घूमे आग लेके
तू मेरे लफ़्ज़ों में बसी जैसी कि शायरी
तू मेरी थी बस पहले किसी महफ़िल में ना गायी गई
पर अब तू है ज़माने की, तो लिख के अब क्या फ़ायदा?
हर ज़ुबां पे तू, तुझसे अब शुरू है हर मुशायरा
अब तेरी गलियों में ठिकाना कर लिया
पर तूने जाके यहाँ से गलियों को वीराना कर दिया है
आँखों से मोती का ख़ज़ाना भर लिया
तुझे पैमाने से दीवाने ने मैखाना कर दिया है
[pre~chorus: munawar faruqui]
कुछ तो तू भी कह दे, ख़ामोशी तेरी आती है तूफ़ान ले के
कश्ती को किनारे दे, डूबा दे या फिर तू मुझे तेरी पनाह में ले के।
[chorus: farhan khan]
जो लौटेगी तो इंतज़ार देदे, रातें कटती नहीं, दिन भी इम्तिहान लेते
ये मेरे हाल~ए~दिल की तुझे ज़िम्मेदार कहते
ये बेख़बर मैं ज़िंदा हूँ तेरे ही आसरे पे
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