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lirik lagu shyko - ghalib ki mazar (hindi)

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दरिया किनारे, पहाड़ पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।
ज़मीन पर या कि आसमान पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।

बैठा हूँ मैं मौत की कगार पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।
थक गया हूँ तुझको मैं तलाश कर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।

तू ही रब, तू ही तो खुदा रही है
तू नहीं तो लगता है खुदा नहीं है।
मकान टूटा यूं, देखते हैं रोज हम
रोज लगता है, दिल की याद आ रही है।

तनहाइयां हैं भूखी, रोज हमको खा रही हैं
क़बूल न हुई शायद तू दुआ रही है।
तू है ज़िंदगी, और ज़िंदगी जुआ रही है
तू भी जैसे उम्र लौट के ना रही है।

ख़ाली तेरे लिए दिल में सब जगा रही है
दिले बीमार की, तू ही तू दवा रही है।
ऐ मौत, तू भी देख, ज़िंदगी निभा रही है
तेरे पते कुछ छोड़, हमको कुछ पता नहीं है।

ना ग़ालिब, ना गुलज़ार में बैठा
मैं ‘गुले बहार’ में।
तराज़ू में वफ़ाएं हैं
इश्क़ आ गया बाज़ार में।
दरिया किनारे, पहाड़ पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।
ज़मीन पर या कि आसमान पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।

बैठा हूँ मैं मौत की कगार पर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।
थक गया हूँ तुझको मैं तलाश कर
मिलने आना मुझसे ग़ालिब की मज़ार पर।

एक दिन तेरा हाथ लेंगे
और उस पर अपने नाम की लकीर बनाएंगे।
इस दुनिया को बताने के लिए
कि जो चीज़ हाथ में होती है
वो ज़रूरी नहीं किस्मत में भी हो।


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