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lirik lagu shubha mudgal - ab ke saawan

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अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन-मन, जिया ना तरसे, जम के बरस जरा
रुत सावन की, घटा सावन की

घटा सावन की ऐसे जम के बरसे

अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन-मन, जिया ना तरसे, जम के बरस जरा
झड़ी बरखा की, लड़ी बूंदों की
लड़ी बूंदों की टूट के यूँ बरसे
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की ऐसे जम के बरसे

पहले प्यार की पहली बरखा कैसी आस जगाए
बारिशें पीने दो मुझको, मन हरा हो जाए
प्यासी धरती, प्यासे अरमां, प्यासा है आसमां
भीगने दो हर गली को, भीगने दो जहां

अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन-मन, जिया ना तरसे, जम के बरस जरा
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की ऐसे जम के बरसे
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की ऐसे जम के बरसे

लाज बदरी की बिखर के, मोती बन झर जाए
भीग जाए सजना मेरा, लौट के घर आए
दूरियों का नहीं ये मौसम, आज है वो कहाँ
मखमली सी ये फुहारें उड़ रही है यहाँ

अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए रंग, मेरी चुनर से
भीगे तन-मन, जिया ना तरसे, जम के बरस जरा
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की ऐसे जम के बरसे

झड़ी बरखा की, लड़ी बूंदों की
लड़ी बूंदों की टूट के यूँ बरसे
रुत सावन की, घटा सावन की
घटा सावन की ऐसे जम के बरसे

झड़ी बरखा की, लड़ी बूंदों की
लड़ी बूंदों की टूट के यूँ बरसे


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