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lirik lagu shlovij - bhagwan parshuram

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[shlovji “bhagwan parshuram’ के बोल]

[intro]
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
मौत…

[verse 1]
कदम पड़े जिस ओर क्रोध से धरती थर~थर काँपी
जमदग्नि जिनके पिता व संतान रेणुका माँ की
विष्णु जी के अवतार छठे मन की गति के जो साथी
गुरु सबके जो वो उनके थे शिष्य वो परशुराम अविनाशी
वाणी भी छूटे तो लगते बाण
चक्षु में अग्नि गहरा प्रमाण
कुल नाश क्षत्रिय इकीस बार
पंहुचा सभा में जिस हाहाकार
गुरु कहे जाने वाले जाने माने द्रोण थे वो भी थे शिष्य इन्ही के
कर्ण भी छल से इन्ही से था सीखा थे भीष्म भी इन्ही से सीखे
आँखों में क्रोध की लाली थी ऐसी सब रखते थे नजरो को निचे
पूर्व से पश्चिम से उत्तर से दक्षिण हर दिशा में प्राण थे खींचे
वो हैं परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशुराम परशुराम
[chorus]
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
मौत…

[verse 2]
अत्यंत क्रोधी मेरा स्वाभाव मैंने शीश काटा मेरी माता का
अपितु किया वो किसी कारणवश पथ्हर मैं वरना वही बन जाता
चक्षु समक्ष देखा था दृश्य पाषाण रूप सभी भ्राता का
तभी आज्ञा मानी मैंने पिता की क्षण भर ना सोचा जो चाहता था
किया जो बोला पिताश्री ने होक खुश वो कहे वरदान कहो
पुनर्जीवित मेरी माता हो,भ्राता हो स्मृति कोई भी ध्यान ना हो
नाम मेरा राम रखा गया बोले, भोले ये फरसा साथ रखो
काँधे पे राम के रखा गया परशु,तो मुझे परशुराम कहो
परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशु परशु परशु परशु परशुराम
परशुराम परशुराम
[dialogue]
देखो, भगवान परशुराम आ गए बोहोत क्रोध में लगते हैं, क्या वो फिर क्षत्रियों का वध करेंगे?
नहीं,नहीं
उन्होंने इन्द्र को वचन दिया है की वो अब कभी भी क्षत्रियों पर शस्त्र नहीं उठाएंगे

[verse 3]
कांपे थे राजा मेरे कोप से
डोली थी धरती मेरे क्रोध से
जिस ओर पड़ते मेरे कदम थे
क्षत्रिय कांपे उस ओर थे
एक बार पंहुचा मैं उस सभा में
मन की गति से चल के हवा में
खंडित हुआ था जहाँ शिव धनुष
अति क्रोध में था मैं उस सभा में
मेरा परिचय अतयंत क्रोधी बाल ब्रह्मचारी और परशु धारी
क्षत्रियो का कुल नाशी मैं ही इकीस बार धरा काँपी सारी
सहस्त्रबाहु की भुजाओ को काटा था मैंने अपने ही फरसे से
मृत्यु किसकी मुझे खिंच लायी,आयी किसकी है मरने की बारी
है कौन ऐसा उद्दंडी जिसने मृत्यु बुलाई तोडा धनुष
क्रोध से जो अनभिज्ञ मेरे है कौन तुच्छ ऐसा मनुष्य
बोला एक उद्दंडी आप हो शांत तभी कुछ बोलू मैं
भ्राता मेरे श्री राम जिसने तोडा धनुष मैं उनका अनुज
क्रोध से क्रोध था टकराने वाला सभा में उपस्थित थे राम दो
दोनों ही विष्णु अवतारी पर परशु ना पहचान पाया था राम को
इन्द्र को दिया वचन था ये फरसा ना उठेगा क्षत्रिय संहार को
राम ने तोडा फिर क्रोध के साथ बढ़ते हुए मेरे अहंकार को
[chorus]
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
तांडव, मृत्यु, भय, क्रोध
परशु, फरसा, परसु, मौत
ब्राह्मण, ज्ञानी, क्रोधी बोहोत
मृत्यु, मृत्यु, मृत्यु
मौत…

[outro]
शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम के द्वारा ही कलियुग में भगवान कल्कि को अस्त्र/शस्त्र विद्या का ज्ञान प्राप्त होगा


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