
lirik lagu shlovij - 5 - karm sanyas (कर्म सन्यास)
अर्जुन है दुविधा में, करे कृष्ण आगे वियोग।
पाँचवा अध्याय शुरू, है ये कर्म सन्यास योग।।
बोले अर्जुन उचित जो है, माधव केवल वो बताएं
खड़ा दोराहे पर अचंभित मुझको ना उलझाएं
कर्मों के सन्यास उचित हैं या फिर कर्मयोग
दोनों में श्रेष्ठ जो मुझको हे माधव वो बताएं।
दोनों ही श्रेष्ठ व उचित हैं अर्जुन, बोले माधव
दोनो ही रास्ते को परमात्मा से जोड़े मानव
सन्यासी कहलाता को अहंकार को त्याग करे कर्म
पा लेता ज्ञान, कर्म जो कर ईश्वर पर छोड़े मानव।।
जिसका मन अपने वश में है, और काया शुद्ध है जिसकी
मिलता परमात्मा से, योगी वो छाया शुद्ध है जिसकी
जो रहकर दुनिया में करे कर्म, फंसे ना मायाजाल में
हे अर्जुन कर्मयोग है वही, असली माया है जिसकी।
है बस यही अंतर सुन, सामान्य पुरुष और कर्मयोगी में
बंधन से मुक्त योगी, सामान्य पुरुष फल का लोभी है
घर है मानव शरीर, और द्वार पूरे नौ, करें कर्म जो
इनके ही द्वारा होते, पूरे ये कर्म दुनिया के जो भी है।
सब कुछ अंदर अपने, बस समझ ज्ञान की बात तो कर
अंधेरा होगा नष्ट, तू ज्ञानरूपी प्रकाश तो कर
लगती बकवास हमेशा सबको है बात ज्ञान की
ये बस एक सोच है अर्जुन, परमात्मा प्राप्त तो कर।।
अर्जुन हैं दुविधा में करे कृष्ण आगे वियोग।
माधव समझाएं फल की दे छोड़ कर कर्मयोग।।
और आगे सुन अर्जुन, तुझे बतलानी बात जो है
हो जाता ज्ञान नाश उसका, करता भेदभाव जो है
कहलाता ज्ञानी वो जो देखे सबको एक भाव से
पण्डित, चांडाल, जानवर सब पर ही सम्भाव जो है।
जीता है दुनिया को उसने, कहलाया ज्ञानी है
सुख ~ दुःख समझे समान जो स्थिर बुद्धि प्राणी है
बाहर की चीजों से ज्यादा जो अपने अंदर देखे
उसके आनंद की सीमा का, जग में ना सानी है।।
कुछ खाने का भी स्वाद तब तक, जब तक खाते
कुछ अच्छा सुनना भी, निश्चित समय तक ही सुन पाते
ये सारे सुख हैं बाहरी, इन्द्रियां फंसाती इनमें
जो सुख ढूंढें अन्दर, वो ब्रहम पाते योगी कहलाते।
मरने से पहले काबू में, काम ~ क्रोध को किया है जिसनेे
योगी व सुखी है वो, कर पाप खत्म, ब्रहम जिया है जिसने
मन पर विजय के साथ, होती है ज्ञान की शुरुवात
पा लेता मोक्ष, खुद को, ईश्वर सौंप दिया है जिसने।।
दुनियादारी को भूल जो बाहरी विषयभोग को छोड़
आँखों की दृष्टि को ले जाए, बीच माथे की ओर
स्थिर कर दृष्टि ध्यान लगाए अपनी सांसों पर जो
कहलाता प्राणायाम, इन्द्रियों को वश करने की डोर।।
कहलाते भक्त मेरे हैं, कहे मेरे जो पथ पर चलते
होता मैं प्राप्त उन्हें जो कर्मयोग के रथ पर चलते
कलियुग, सतयुग, त्रेता या द्वापर चाहे कोई भी युग हो
हर युग में, मैं मिलता उनको, जो सतसंगत पर चलते।।
करने को दूर दुविधा अर्जुन की, ये सब बतलाया
क्या है सन्यास योग और कर्मयोग ढंग से समझाया
दोनों ही रास्ते जो ले जाते सीधा ईश्वर की ओर
पर क्या है अन्तर दोनो में, संक्षेप में है बतलाया।
वैसे दोनो समान पर कर्मयोग कुछ है विशेष
माधव मुस्काएँ, देखें अर्जुन को, पूछें कोई प्रश्न शेष?
माथे पर गहरा भाव, अर्जुन अब भी हैं गहरी सोच में
अध्याय पाँचवा ये, श्री मद् भगवद् गीता उपदेश।।
अर्जुन है दुविधा में करे कृष्ण आगे वियोग।
माधव समझाएं फल की दे छोड़, कर कर्मयोग।।
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