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lirik lagu narci - mahishasur mardini/महिषासुर मर्दिनि

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[narci/नारसी]
तू काया नहीं सोच है जो जीवित है अनंतकाल
काल बनके अंत तेरा करुँगी मैं समस्त काल
कंठ फाड़ शूल से मैं वाणी तेरी रोकूं नीच
रण पे हाँ धर्म की तू फिर जायेगा द्वंद हार
चीर को तो स्पर्श कर, तुझे चीर दूंगी बीच से
शीश को उखाड़ फेंकूं केश तेरे खींच के
पापियों के कानों में तू बोलेगा ये चीख के
वो साक्षात काल है उसे देखो ज़रा ठीक से
चण्ड मुंड, रक्तबीज ले ले चाहे रूप सौ
रूप मेरा शाशवत चीरे तेरे रूप सौ
रात हो या धुप हो मैं रौंदूँ तेरे झूठ को
न जीतेगा तू कभी चाहे नीति तेरी कूट हो
पापी जब भी मानवता पे झंडा अपना ठोक डाले
बहुत सारे पापी मैंने रोज़ आके नोच डाले
बोझ पाले काम का जो मारे वो भी सोच वाले
रोष आगे रोज़ मेरे तेरे जैसे बहुत हारे
थामा है त्रिशूल, हाथ में है चक्र
कमान, तीर, गदा, खड्ग, लहू रंग वस्त्र
हाथ में कमल और सिंह पे सवार मैं
केश काले हवा में है रूप देख उग्र
देवी होके छवि त्रिदेव की दिखाती हूँ
अधर्म के लहू से शूल मेरा मैं नहलाती हूँ
तेरे जैसे बेहिसाब काटूं सारे युगों में
महिषासुर मर्दिनि मैं ऐसे न कहलाती हूँ।
[nadar noor/नदर नूर]
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

[narci/नारसी]
मैं काल हूँ, मैं प्राण हूँ , में दंड हूँ, विधान हूँ
मैं चोट हूँ, मैं बाण हूँ , मै कण हूँ, ब्रह्माण्ड हूँ
मैं स्वर हूँ, मैं कंठ हूँ , मैं यात्रा, मैं पंथ हूँ
सौम्य हूँ, प्रचंड हूँ , मैं आदि हूँ, मैं अंत हूँ
विचार तू, धिक्कार तू, है काला भी विचार तू
फ़ालतू है धार तू, न तू ढाल तू, न वार तू
पाप का आधार तू, भारी दुराचार तू
धर्म को हिला दे जो न ऐसा है भूचाल तू
मार दूँ, तेरे जैसे सौ मार दूँ
गाड़ दूँ, तुझे पैरों तले गाड़ दूँ
काट दूँ तेरी वासना का हाथ
मेरे रहते ज़रा छु के देख नारी एक बार तू
काँप उठे पापी मेरे शेर की दहाड़ से
पैर धरूँ तेरे जैसे पापी सौ फाड़ के
मुद्रा ही देख मेरी चाहे तू पंडाल में
खड़ी तेरी छाती पे हूँ तीन शूल गाड़ के
रूप ये डरावना है तेरे लिए यातना
छोटी तेरी धारणा की लेने आयी आत्मा
वासना का खात्मा हूँ, काँप न, तू भाग न
सारे युगों में करूँ धर्म की मैं स्थापना
थामा है त्रिशूल, हाथ में है चक्र
कमान, तीर, गदा, खड्ग, लहू रंग वस्त्र
लेके आना तेरी जैसी पापियों की भीड़ चाहे
मारने को खड़ी तेरे जैसे मैं सहस्त्र
देवी होके छवि त्रिदेव की दिखाती हूँ
अधर्म के लहू से शूल मेरा मैं नहलाती हूँ
तेरे जैसे बेहिसाब काटूं सारे युगों में
महिषासुर मर्दिनि मैं ऐसे न कहलाती हूँ।
महिषासुर: मैं केवल एक राक्षसी काया नहीं बल्कि एक विचार हूँ, एक स्वभाव हूँ जो हर युग में नया रूप लेकर वापिस आता रहेगा। मैं हर बार मरूँगा, हर बार जीऊँगा और हर बार वापिस भी आऊँगा। कितनी बार वध कर लेगी मेरा?

माँ दुर्गा: तू जब जब आएगा तो मुझे ही साक्षात काल के रूप में पायेगा। तू चाहे काया बनकर आये, चाहे सोच या फिर स्वभाव, ये त्रिशूल तेरे ही रक्त से स्नान करेगा। आने वाले युगों में यदि महिषासुर नाम की छाप रहेगी तो उस अधर्मी छाप के ऊपर पैर रखे महिषासुर मर्दिनी भी रहेगी।

[nadar noor/नदर नूर]
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते


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