lirik lagu narci - bharat ke ram (भरत के राम)
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
साँसें उस दिन ही रुक जाए
साँसें उस दिन ही रुक जाए
जिस दिन राम को मैं बिसराऊ
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
न थी खबर भरत को ये की
राम जा चुके थे वन
जब पता लगा तो काँपी
आत्मा और पूरा तन
स्वयं की माता पे था
रोष आया निरवधि
पूछा कैसे क्रूर हुआ
माता का हाँ कोमल मन ?
पिता का साथ क्यूँ हटा
क्या था मेरा प्रभु कसूर ?
दिन ऐसा क्यूँ दिखा
विधाता क्यूँ बना क्रूर ?
बेसहारा प्राणी तेरा
टूट चूका पूरा है
पिता समान भाई को भी
कर दिया क्यूँ ऐसे दूर ?
भाई लखन और सीता माँ भी
सोचते क्या होंगे ही
राज छीना माँ के संग और
अब बना है ढोंगी ही
बिन मुझे हाँ राम के
स्वीकार नहीं राज्य है
बिन मुझे हाँ राम के
ना गद्दी चहिए सोने की
भाई ने ठाना संग सेना के
जायेंगे मिलने राम को
पड़ पैरों पे माँग क्षमा
मैं आऊँगा लेके राम को
विरह ये विधाता मेरे
प्राण खींचे ना जाए कहीं
मरना भी यदि तय है तो
आगे देखूँ राम को
साथ चली थी सेना, भाई
गुरु और तीनो मातायें
प्रकृति से पूछ रहे थे
कहाँ पे मेरे भ्राता है ?
उड़ते पंछी, वनों के वृक्षों
दे दो हाँ संकेत कोई
राह कौनसा प्रभु राम को
मुझे बता दो जाता है
पैरों में ना पादुकायें
बेचैनी है चहरे पे
माथे पे पसीना और
पैर चले न धैर्य से
नदी यदि हाँ राह भी रोके
उसमें भी वो तैरेंगे
काँटों की वो बेले लम्बी
हास कर तन पर पहनेंगे
मिलने हेतू प्रभु राम से
ह्रदय बड़ा ही पागल है
तूफानों के वार भयानक
सेह रहे है साहस से
प्रकृति को कह रहे है
ले ले चाहे प्राण मेरे पर
दो भाइयों को उससे पहले
मिलने देना आपस में
भरत यदि भूमि है तो
राम उसपे बारिश है
राम नाम के बिना भरत
पूरा ही तो खाली है
चाल लड़खड़ाती मेरी
राम ने संभाली है
राम पूरा वृक्ष
ये प्राणी छोटी डाली है
इस दो अक्षर में जग है समाया
नस नस में बहे भक्ति तेरी
नस नस में बहे भक्ति तेरी
निश दिन भजन तेरा ही गाऊं
साँसें उस दिन ही रुक जाए
जिस दिन राम को मैं बिसराउं
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
मिला पता जो भ्राता का तो
गति बढ़ा दी पैरों ने
हुआ असर ना काँटों का भी
जो चुभे है पैरों पे
चाहते है वो देखना
चेहरा अपने भाई का बस
भाग रहे है दूर भरत
विरह के अंधेरों से
लक्षमण ने सुनी आवाजें
बीच वनों में अश्वों की
थाम धनुष वो देख रहे है
हलचल आगे वृक्षों की
देख भरत को सेना संग
बोले अपने भैया को
देह भरत का आज बनेगा
तीरों का मेरा लक्ष्य ही
नाम सुना जो भाई का तो
राम लबो पे लाये हँसी
अश्रु से है नैना नम
पैरों पे है धीमी गति
भाई लखन के कंधे पर
हाथ रखा और बोले राम
प्रिय भरत की आत्मा
कभी लोभ में नहीं फसी
बात बिना ना जाने तुम
नियत उसकी तय करो
धनुष करो ये नीचे और
बेमतलब ना भय करो
भरत हमारा साफ ह्रदय से
चलना जाने भाई मेरे
देखो उसकी आँखों में
साफ लिखा है न्याय पढ़ो
लक्षमण ये कांटें सौ
यदि यहाँ पे बिखरे होंगे
देख इन्हें वो रोयेगा
दिल के भी सौ टुकड़े होंगे
अभी हटा दो कांटें ये
अन्यथा वो सोचेगा की
कैसे हम तीनों
इस राह से निकले होंगे
पास राम के पहुँचे जब
आँखों से न नीर रुका
संन्यासी हाँ रूप राम का
ह्रदय भरत का चीर चूका
जिस भाई को देखा था
राजसी पहनावे में
देखेंगे उन्हें ऐसा भी
सोच ह्रदय ये पीड में था
पैर भागे राम को
उन्हें दिखा ना और कोई
गले लगाकर प्रभु राम को
भरत की आँखें खूब रोई
भरत को ऐसे चैन मिला
प्यासे को हाँ जैसे जल
गले लगाकर भाई को
पीड़ा सारी दूर हुई
नज़रों से ना हट सके है
मोहक ऐसा चित्र कुछ
देख नज़ारा बंधुत्व का
धन्य हुआ चित्रकूट
भरत मिलन की ये कथा
अमर रहेगी श्रष्ठी में
राम कथा में अमर रहेगा
पावन सा ये चित्रकूट
साँसें उस दिन ही रुक जाए
जिस दिन राम को मैं बिसराऊ
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
मौन भरत का राम के दिल को
कर रहा है क्यूँ भारी है ?
बात दबी है क्या दिल में
क्यूँ भरत खड़े लाचारी में ?
श्री राम के दिल की लो
गति बढ़ी है तेजी से
तीनों ही माताओं को
जब देखा श्वेत सारी में
पिता गये है छोड़ हमें
जब खबर सुनाई भाई को
राम, लखन, सीता को
जैसे गर्जन छूने आयी हो
ह्रदय गया था हिल पहले
फिर आँखों से ना नीर थमे
पूछ रहे विधाता को
ये घड़ी हमें दिखाई क्यूँ ?
भरत ये बोले भाई को
ना साथ आपसे छूटेगा
आज यदि ना लौटे तो
हर प्राणी मुझको पूछेगा
राम भरत को बोले ये
प्रजा तुम्हें ना कोसेगी
लौट गया जो वापिस मैं तो
दिया वचन भी टूटेगा
रघुकुल की रीत निभाने
वनों को है प्रस्थान किया
वचन निभा के लौटूँगा मैं
सोचके सीना तान लिया
राज संभालो भाई मेरे
यही आदेश मेरा है
सुनके बातें रघुवीर की
भरत ने कहना मान लिया
“भैया , मैं राजा नहीं
आपका सेवक हूँ
आपके लौटने तक
आपकी चरण पादुकाये ही
सिंहासन पर विराजमान रहेंगी
उन चरण पादुकाओं का आशीर्वाद लेकर ही
ये, ये भरत श्री राम का राज कार्य करेगा”
पैर लगा पादुका पे
दूर करी मेरे दिल की क्षति
पादुकायें सर पे रख
भरत ने दिल की बात रखी
प्राण मेरे मैं दूँगा त्याग
कसम मुझे है आपकी
एक दिन भी विलम्ब किया
श्री राम हे सुनो यदि
राम निशानी सिंहासन पे रख
शीश भी गया है झुक
महल में कैसे स्वयं रहे वो
काट रहा है ये भी दुःख
भरत ने फिर वनवास लिया
ह्रदय में उनके बात यही
भाई यदि है वनों में तो
दिल कैसे ये भोगे सुख ?
“भैया
अब मेरा वनवास तभी समाप्त होगा
जब आप माता सीता और भैया लक्ष्मण
के साथ वापिस आयेंगे”
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
साँसें उस दिन ही रुक जाए
साँसें उस दिन ही रुक जाए
जिस दिन राम को मैं बिसराऊ
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
प्राण रहेंगे व्यथा में
यदि मिला राम का धाम नहीं
कहने को है दो अक्षर का
पर साँसें है नाम यही
दुनिया माँगे हीरे मोती
भव्यता और नाम सही
नीरस है सब मेरे लिये
यदि साथ मेरे है राम नहीं
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