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lirik lagu narci - aisa hoga kalyug

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[lord krishna]
कलयुग में मनुष्य दूसरों के दुख में अपने सुख ढूँढेगा अपने परिवार का पेट पालने के लिए दूसरों की हत्या करने में भी उसे कोई ग्लानि, कोई पश्चाताप नहीं होगा

दूसरों के रक्त में सनी हुई रोटी वो स्वयं भी खाएगा और अपनी संतान को भी खिलाएगा

अपने भी पराये हो जायेंगे

[narci]
खून के रिश्ते मैले होंगे शर्म करेगा कोई न
पक्ष असुरी भयगा, धर्म पढ़ेगा कोई न
कर्म की बातें सब करेंगे हाथों में ले गीता को
फलों की सबको चिंता होगी, कर्म करेगा कोई न
न्याय बिकेगा खुला और मौन पड़ेंगे न्यायाधीश
लोगों के ही आगे होगी हत्या फिर तो न्याय की
जिसने न कसूर किया वो कारागार में रोयेगा
जान लेगा भाई सगा स्वयं अपने भाई की
आवाज़ उठेगी नेकी की न सब करेंगे छोटा मन
लोग हसेंगे देख किसी का बेबसी में रोता क्षण
द्वापर से भी नीच यहाँ होंगे सौ दुर्योधन
चीर फटेगा नारी का तो सब बनेंगे श्रोता गण
नीच बड़े उस्काएंगे की त्याग देना तू धर्म
हरी कथा चोर और कली के आके छू चरण
माँ, भाभी और बहनों को न छोड़ेंगे वो भेड़िए
बच्चों से भी नीच करेंगे वो गिरोह में कुकर्म
आने वाला काला युग होगा कुछ ऐसा
पूजेंगे वो देव एक ही जिसे कहेंगे पैसा
रिश्तों को ये खाएगा, न्याय रखेगा जेब में
श्रद्धा झूठी कभी भी दिल की कालिक को है ढकती न
ढोंगियों की झूठी लीला कभी ढोंग से थकती न
मंदिरों के आगे ये नाचेंगे श्रृंगार में
पाने को प्रसिद्धि बस ढोंग करेंगे भक्ति का
[krishna]
अरे ये तो कुछ भी नहीं है कलयुग में मनुष्य की विचारधारा इससे भी गिरी हुई होगी

[narci]
अस्थायी सुखों को पाने हेतु सभी हवस को भागेंगे
साहस होगा जीने का न, काया खुद की टाँगेंगे
नहीं मिलेंगे श्रवण कुमार, माँगेंगे सब संपत्ति
राम नाम तो लेंगे पर मर्यादा भी लांघेंगे
मदिरा, जुआ, सोना, काम बैठेंगे ये सर पर ही
वेश्यालय ही करेंगे तब सबके मन को आकर्षित
लहू लगेगा मुँह ऐसा की मानवता को भूलेंगे
पशुओं तक न सीमित होंगे बनेंगे सारे नरभक्षी
प्रेम की परिभाषा भी ये देंगे यहाँ पे पूरी रौंद
दे वचन ये प्रेमी को करेंगे सारों से संभोग
कली काल के प्राणी न सात वचन निभायेंगे
न निष्ठा होगी रिश्तों में, चिंता का बस होगा ढोंग
छोटे से ही विवरण में लेना तुम अनुमान लगा
असुरों से भी नीच बनेंगे सृष्टि के इंसान वहाँ
प्रह्लाद के जैसे मिला कोई तो भवसागर के होगा पार
बैठेगा न कोई वरना नारायण में ध्यान लगा

[outro]
कलयुग की सबसे बड़ी विडंबना ये होगी की मनुष्य अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरों के बड़े बड़े हितों को भेंट चढ़ाने से संकोच नहीं करेगा


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