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lirik lagu jagjit singh – na jee bhar ke dekha na

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न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर’अब का
बरसती हुई रात बरसात की


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