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lirik lagu kostuv keshav - mrityu

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नमस्कार, हमारे इस कार्यक्रम सुखी स्याही में आपका स्वागत है अगले जीस कलाकार का गीत हम सुनने जा रहे हैं वह मृत्यु को प्राप्त हो चूके हैं उम्मीद है उनका यह गीत आपको पसंद आएगा आइए सुनते हैं, beat पर बातें..

नहीं इंसान शाश्वत
कलम का है सहारा बस
साथ पाकर स्याही का करूँ
मैं भी गुज़ारा बस।

अनजान अपने आँसुओं से
मन को एक लिखा था ख़त
हताश न हो, कर सब्र के
हर सबक सिखाता वक़्त।

करूँ प्रतीत, मैं हूँ ठीक
ना कर पाऊँ अभिलाषा व्यक्त
बन सकूँ कि मैं समर्थ
समा जाए मुझे जगत हाँ।
बन सकूँ कि मैं समर्थ
समा जाए मुझे जगत हाँ।
बन सकूँ कि मैं समर्थ
समा जाए…

मैं पंक्तियों में न चलूँ
मैं पंक्तियाँ लेखन करूँ
है शक्तियों की चाह तो ये
शक्तियाँ अर्जन करूँ।
अर्थियाँ हैं अंत जीवन
शब्दों से सृजन करूँ
मैं बंधनों में ना बंधूँ
मैं मोह का हरण करूँ।

करी फ़रियाद भी ख़ुदी से
करा याद भी ख़ुदी को
आज दफ़्न है वो मैं
जिसमें बात थी छुपी वो।

लोगों को है लगता
कि मैं क्यों सुखी हूँ?
पर आँखों में आँसुओं से
पूछा, मैं क्यों दुखी हूँ?

पन्नों पे ख़्वाब मेरे, और
काग़ज़ों का साथ
दिल में बस दाग़ मेरे, और
चाहतों का साथ।

मन में बस आग मेरे, और
रुकावटों का साथ
स्याही की लिखाई से मिलता
राहतों का साथ।

खुद से खुद का अस्तित्व
होता न बर्दाश्त अब
खुद से बेहतर हो पाता
मैं काश।
हर कल से बदतर है
हर मेरा आज
अंदर से तो हूँ ही
बाहर से भी हो जाऊँ लाश।

किया व्यतीत अकेले जीवन
आत्म के साथ पर
कंधा देने लोग चार आए
आठ थे हाथ।

करता नृत्य मेरा तन~बदन
आग के साथ
महत्वता मनुष्य की है क्या
राख के बाद?

जीत सका है कौन आज तक
भाग्य के साथ?
कल मैं ना जी सकूँगा मैं
आज के बाद।

जिनकर ने दिनकर की तरह
लिखी पंक्तियाँ
‘आह’ में प्रज्वलित वो
राख थे हाथ।


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