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lirik lagu karun (ind) - vichaar

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[intro]
check, okay

[verse 1]
हाँ, माना मैंने मैं भी अच्छा ना कोई आदमी हूँ
सोच तेरी बोले, सोच मैं भी लाज़मी हूँ
है वक़्त कम जो तेरा, सुनता जा तू, काग़ज़ी हूँ
लिखते~लिखते सोचा भेजा है ये आदमी क्यों
है आदमी ना वो, तेरी अपनी सोच है
करती बात तुझसे तेरी अपनी खोज है
लोटी आज दिन, पिछला रहता बोझ है
है क़र्ज़ बढ़ता तेरा, बटुए पे ये मोच है
हैं कितनी रातें तेरे साथ में बिताई थी
सोते साथ में थे, इज़्ज़तें डुबाई थीं
क्या सोचते मैं किसके बारे में यूँ कहता हूँ
जिसके चीख से मैं बेहिसाब डरता हूँ
जिसका ज़ोर रोकने का मुझ में बल नहीं है
चढ़ता सर पे मेरे, इसका कोई हल नहीं है
है सोच मेरी जिस से मैं भी भागा फिरता हूँ
है खोज मेरी जिस से मैं भी जागा इतना हूँ

[chorus]
बिखरे पड़े, मेरे सवाल खड़े
बिखरे पड़े, सवाल खड़े
बिखरे पड़े (बिखरे पड़े), मेरे सवाल खड़े (मेरे सवाल खड़े)
बिखरे पड़े (बिखरे पड़े), मेरे सवाल खड़े (मेरे सवाल खड़े)
[verse 2]
हाँ, जग चुका मैं पूरा, सोच का ही ज़ोर है
है करती बात मुझसे, देती मुझको दोष है
मेरी सोच, दिल पे खरोंच
जीने ना देती मुझे, मिलती ये रोज़ है
[?] मुझे कोई भी हिसाब नहीं
लड़ता ख़यालों से मैं, ज़िंदगी नवाब सी
फ़ितरत है ढीली फिर भी सोच का जवाब नहीं
किस्मत है फीकी फिर भी शब्दों का व्यापार नहीं
हाँ, है मैं आया लेके व्यक्तिगत विचार भी
ख़ुद से मैं बातें करता, आदमी बीमार नहीं
रखूँ मैं जेबों में एक क़लम, है रुमाल नहीं
सीखूँ मैं जिससे, लड़ूँ रोज़ सरेआम ही
हाँ, है मचाया मैंने बेहूदा बवाल भी
लिखता मैं तब से मेरी सोच भी सवाल थी
करता मैं वादे, मेरी आदत है नादान सी
इधर उधर मैं जाता, ढूंढूँ खाली सा दिमाग जो
पूछे ना ज़्यादा, करे फालतू की बात नहीं
हाँ, वैसे बोलने का काम तो आसान नहीं
फिर भी मैं बोलूँ जब तक है मेरा मसान नहीं
आधा मैं ज़िंदा, बाक़ी आधे का हिसाब नहीं
ज़्यादा ना समय देता, आदमी विमानि हूँ
छूता मैं अंबर तेरा, धरती पर शैतानी हूँ
[?] जाता मेरी ख़बर तो ले लो
सब कुछ है जाना तेरी सोच का मैं ज्ञानी हूँ


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