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lirik lagu ikka, sunidhi chauhan & sanjoy - bhari mehfil

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ना भरी महफिलों में बुलाया करो
तन्हाइयाँ नाराज़ हो जाती हैं
नींद आँखों से ओझल नशा हो गया
पर वो आराम से कितने सो जाती है

तुमने दिल्लगी की नमाज़ें पढ़ाई
हमने तो वफ़ा में वफ़ा ही न पाई
हम पतझड़ के पत्तों से हैं बिखरे बिखरे
मिला सर्द मौसम और उसकी रुसवाई

हम अश्कों में अपने ही डूबे रहे
ना किनारों से उसने आवाज़ें लगाई
हम रह रह कैद अपनी ही सिसकियों में
क्या तू रोने की देता हमको कमाई

हाँ सोते के फिर से वो सपनों में आई
फिर आँखें खुली और वो खो जाती है
नींद आँखों से ओझल नशा हो गया
पर वो आराम से कितने सो जाती है

तुमको पता ना के क्या हमपे बीते
खुदसे तुम पूछो के क्या कह दिया
शक से ना चलती मोहब्बत की साँसें
जाने बिना बेवफ़ा कह दिया

मैं तेरी की तेरी हूँ तेरी कसम
तेरा दिल तोड़ू ऐसा गुनाह ना किया
बयां ना कर पाऊँ के कितना असर
दर्द जो तूने वफ़ा को दिया
तकलीफों में दिन मेरे ढलते रहे
और अश्कों में शामें गुज़र जाती हैं
उनसे खफा पर ना उनको खबर
ये दीवानी भी उसकी ना सो पाती है

तन्हा रातों में एक नाम याद आता है
कभी सुबह कभी शाम याद आता है
जब सोचते हैं कर लें दोबारा से मोहब्बत
तेरी मोहब्बत का अंजाम याद आता है

ज़ख्म देकर ना पूछ मेरे दर्द की शिद्दत
दर्द तो दर्द कम ज्यादा क्या
दिल पे हाथ रख के खुदसे से पूछ
क्या मैं तुझे याद नहीं आता क्या

मिला सुकून मेरे दिल को जब जलायी
जो संभाल लगी फोटो यार की
कोखले थे रूखे मुरझा से गए
उस बेटे को ना मिला धूप प्यार की

रातें मांगती साथ मेरी आँखों से
बहुत भारी चढ़ा नींद का जो कर्जा है
हाँ याद आया तेरे जो थे आखिरी अल्फ़ाज़
जी सके तो जी लेना मर जाए तो ही अच्छा है

वो हर कोने में हमको देखे सुनाए
ना आवाज़ खामोश हो पाती है
नींद आँखों से ओझल नशा हो गया
पर वो आराम से कितने सो जाती है


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