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lirik lagu himanshu garg - 9th symphony

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1. ~शनैः शनैः समय~
( vinyl player on )
मैं समय हूँ मेरा जन्म सृष्टि के निर्माण के साथ हुआ था
मैं पिछले युगो में था इस युग मे हूँ औऱ आने वाले सभी युगों में रहूंगा
और मैं इन सारी घटनाओं का साक्षी रहा क्योंकि मैं समय हूँ
और जो समय के साथ बदलते नही समय उन्हें बदल देता है
और आज एक बार फिर समय बदल रहा है
( from mahabharat vocals by harish bhimani )

hook ~
गुम सुकूँ क्या कर सके
क्यों दिल में होनी का डर रखे
बस लड़ सके मगर समय
शनै: शनैः ले करवटें ×2

verse
एक शख्स चला समय पे पार पाने
था वाकिफ आखिर में कंधे चार पाने
यार दरकिनार मानें प्यार में गंवार जाने
विनती श्रोताओं से इसे खुद का आजार माने
वो ना हार माने छलनी होके बैठा
किस्मत है बदलनी रोज रो के कहता
खुद को झोंके बैठा खुद जो धोखे सहता
रोके बैठा सपनो को जो अपनो को था खोके बैठा
उमर थी 6 पितामह की शय्या सजती देखी
पूरे बचपन फिर थालिया थी बजती देखी
धँसती घर गृहस्थी देखी हंसती पूरी बस्ती देखी
वेदना उपजती देखी तरसती हस्ती देखी
माँ सिसकती देखी पिता भी रूठे दिखते
खुदा का रुख किया तो वो भी रूठे दिखते
वादे झूठे दिखते उठते अंगूठे दिखते
किरदार सारे उसको अपने से ही लूटे दिखते
गमो के साथ था कल की सोचके रोज था कांपता
कोसता लाख था जोश था जागता
होश ना घात का दोष जज्बात का
दोस्त था ताकता लगता मजाक था
हारा ही आखिर वो दुनिया से भागता
11 की उमर शुरू किया सामना
फिर सुबह शाम किताबो को थामना
पिता पे सपनो के लिए थे दाम ना
सीखा फिर काम वो जाके दुकान हां
कमाया पहला वो नोट था बीस का
पन्ने पे खाका भविष्य का खींचता
दिखता पर अंत जब आंखे था मींचता
ढूढे सुकूँ जबसे लांघा दहलीज था
कहता बड़ा होके करने शोध बहुत
पर इस सफर में थे अवरोध बहुत
मैंने दिए गड़े मुर्दे खोद बहुत
मुझे आती दिखती उसकी रोज मौत
खैर बचपन से बागी सा था
खिलौनों की ज़िद ना वैरागी सा था
ये ख्याल ही आता घर से भाग ही जाता
क्योंकि जहां भी जाता लगता दागी सा था
वैसे चाहिय तो ना यूँ राज उगलने
पर हम जैसे लेखक है कहां सुधरने
जब लगी पिता की थी सांस उखड़ने
तो बोले वो ना जा होक निराश तू पढ़ने
जुटा वो 10वीं के इम्तिहान में
पिता की जंग को लेके जो ध्यान में
दिखा फिर सीधा वो खड़ा शमशान में
पिता की चिता का करता बखान है

hook ~
गुम सुकूँ क्या कर सके
क्यों दिल में होनी का डर रखे
बस लड़ सके मगर समय
शनै: शनैः ले करवटें ×2

verse
मिला मैं एक दफा तब बताया उसने ये वाकिया
मानो थमाया हो अंतिम खत और मैं था डाकिया
बीते 6 साल उसने सबको गुमराह किया
कहानी बाकी पर मैंने उससे था वादा किया
कि वो जा रहा दूर मैं करूँ ना किसी को इक़तला
उसकी कहानी में अपना अतीत ना दूं मैं लिख भला
सीखूं कोई इक कला और दिए चला वो इक सलाह
कि देखता ना मुड़के पीछे सच्चा इक पथिक भला

पर अब क्या
सही कहता था यार वो ~ वक़्त बदलता है करवटें
◆◆◆◆
खैर वो अब जहाँ भी हो खुश रहे कहानी अधूरी छोड़ रहा हूँ क्योंकि पूरी करने की औकात नही है
◆◆◆◆

2. ~इल्तिज़ा~
अहमद फराज जी का एक शेर है कि
किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा
इसी को लेके कुछ लिखा है सुनियेगा जरा

hook ~
दिल्लगी की इंतेहा ये
ठहरने को दिन कहां रे
चलता जाऊ मैं अकेला
इक मुसाफिर की इल्तिज़ा ये × 2

verse ~
हूँ काफिर खुदा से पर दरख्वास्त मेरी
होती नियति ना अब ये बर्दाश्त तेरी
दफ़नाउँ कहां मैं सपनो की लाश मेरी
अपनो की रूह भी तो जन्नत से आवाज़ दे रही
काश तेरी कोशिश में किस्मत भी साथ होती
ना ये कलम हर रात जज्बात खोती
ना तेरे गम में भीगी फिर दवात होती
बाखुदा होके ना काफिर तेरी जात होती
लोग बोले बेटे वापस वही लौट जा
पाने की खुशी बस जहाँ खोने का खौफ ना
खुदा से खौफ खा खुद को उसे सौंप जा
कलम छोड़ वक़्त इबादतों में झौंक ना
करना शोक ना पर आंसू ना सलाहें माने
बाते दिमागी ये वो भला कहां है जाने
दिल की कला है जाने दिल ही चला है खाने
सपनो की भूख मंज़िल भी बला है माने

बचके दिल से ख्वाब चल भी दे अगर
वाकिफ ना जाये कहां पर डगर
है ये डर भी मगर रुका अगर तो क्या हशर
क्या कल की कोशिशें और क्या अंजाम~ए~सफर

hook ~
दिल्लगी की इंतेहा ये
ठहरने को दिन कहां रे
चलता जाऊ मैं अकेला
इक मुसाफिर की इल्तिज़ा ये × 2

verse ~
चला जो राहों पे कदम गुनाहों से
आंसू नाकामी के इन भटकी निगाहों में
वासर निशाओ में लेकर जो जाऊं मैं
उम्मीदे बाहों में चाहे फिजाओं में
ख्वाहिश खिजाओ में गिरती रोज जमी में
कहती कि रिश्तो का बोझ हमी पे
मुजरिम ये दिल फिर दोष हमी पे
बहकाए हमे कि फिरदौस जमीं पे
सिर्फ ओस जमी ये अश्को की
चले बयारे बस रश्को की
बेचैनी पसरी सर्वशः क्योंकि
करती वकालत ना तेरे इन रस्तो की
सुन सपनो की चीखें रोज होते वो छलनी जो
चुनना सम्भलकर हर मोड़ पे राहे निकलनी दो
क्या गर हमसफ़र ने छोड़ के बाहें बदल ली तो
बस याद रख राह वही अपने सपनो की तुझे चलनी जो
तौले जमाना उसूलों में तुझे बांट पे बांट धर
देखे तमाशा तबाही का फिर जो लात पे लात धर
क्यूँ चुपचाप दुनिया की सहता तू यूँ रात पे रात कर
हारके खुद से ही बैठा तू यूँ हाथ पे हाथ धर

hook ~
दिल्लगी की इंतेहा ये
ठहरने को दिन कहां रे
चलता जाऊ मैं अकेला
इक मुसाफिर की इल्तिज़ा ये × 2

3. ~next stop~
और बेटा कोटा हो गया उदयपुर हो गया अब अगला कहां ठहरने का इरादा है तेरा
“देखते है अंकल जी”

verse
शिद्दतों से suffer जो सफर किया
हर शहर को फिर जो अपना दूजा घर किया
दरबदर जो यादों ने था बेसबर किया
पानी घाट घाट का गला जो तरबतर किया
तिश्नगी में गटके दिल ने गम के घूंट हां
कितनी यारियो के मिलते अब सबूत ना
जुड़के टूटना अब भूत हां वो रूठना
बार बार बोली बारहवीं की बाते झूठ ना
कोटा पूरा कबका खुद पे ना संशय हुआ
साल भर की शब के बाद ये सूर्य उदय हुआ
क्षय जो भय हुआ गम कलम में व्यय हुआ
कागजो पे गुजरे किस्सों का था मिलना तय हुआ

hook ~
अतीत से आजकल मैं कहता lets talk
pen cpu ये पन्ने जैसे desktop
to be continued करे relax dot
सफर जिदंगी का पूछे मुझसे next stop

verse ~
चला सफर पे बिछड़के घर से लड़ झगड़के
भड़के लड़के फिर जो फड़के सर से धड़ थे
गढ़ से गढ़ते गीत पढ़ते पीर खड़के
बढ़ते बड़ से प्रीत पर थे मीर सड़ते
तीर सरपे वीर मरते war प्लासी
खैर छोड़ो ये सब अपने सारे यार classy
भले फिर चार पास ही बाकियों के तार काफी
खड़के glaasy तो कुछ खरपतवार नाशी
हां दीदार काशी दिल से हम भी कांडी से
मूक हो चला में जबसे गान्धी के कान दीखे
लड़ूँ कला की खातिर सफर ये दांडी से
पकाय खिचड़ी अपनी बीरबल की हांडी से
लोग कितने दवा दुआ ना फैले रोग कितने
ज़िंदगी के रहगुजर में बाकी है वियोह कितने
इश्क़ के उद्योग कितने अश्क़ और सोग कितने
कितने लौटे बीच रस्ते हुए अमोघ कितने
याद आज भी चला जो कच्चे रास्तो पे
लिखूं क्या उस गली के साथियों से वास्तो पे
मन उदास क्योंकि याद उनकी आस झौंके
राज पर्दाफाश होके दिल को दे पचास मौके
पर मैं मौका एक भी था क्यों भुना ना पाया
आपबीती अपने दोस्तों को था सुना ना पाया
उनको ना सुनाना भाया अपना ही गुनाह ना पाया
दिल को दिल्ली करके उनको यमुना ना पाया
लाल जामा पहने दिल जो डरता लश्करों से
रिश्ते बनते हाफिज पर नफरत के तस्करों से
कैदी बस घरों के मसखरों से अफसरों पे
प्रतिज्ञा भीष्म सी जवानी सोती दस शरो पे
बाकी बस झरोखे गुम सुकूँ जरूरतों में
हां जी दस घरौंदे बचपन की मूरतों में
टस से मस ना होते शामिल हम भी मूरखों में
दिखता दर्द आइने जो झांके सूर सूरतों में

hook ~
अतीत से आजकल मैं कहता lets talk
pen cpu ये पन्ने जैसे desktop
to be continued करे relax dot
सफर जिदंगी का पूछे मुझसे next stop

4. ~इम्तिहान~
on call ~ h~llo
[ aur bhai himashu kaisa hai aajkal to yaad bhi nahi krtaa ]
~ abey kya yaar ghar pe pade hai
[ kyu kya exam nhi ho rahe ]
~ nahi second year mai he latka rakha hai
call disconnect…

hook ~
बागी दौर कितने है इन से हाँ है
बाकी और कितने है इम्तिहान

bridge ~
हर घड़ी सर पे सौ सवाल हो
हर बडी कर के क्यों मलाल तो
सर चढ़ी अब ये धुन फिलहाल जो
तर खड़ी गम से सुनती हाल को

verse ~
करूँ मैं क्या अपने भी लेते परीक्षाएं
डरूं मैं ना सपने भी देखे प्रतीक्षा है
मरूं मैं क्या पूछे पलती ये इच्छाएं
भरूँ मैं हाँ समूचे कल की ये शिक्षाएं
खोया क्या पाया क्या लगता सब जाय सा
कागज को भाया था मैं कबका सताया सा
सुकूँ सफाया था काफिरा जग आया था
सच जो साया सा अभी पन्ने पे आया कहाँ

hook ~
बागी दौर कितने है इन से हाँ है
बाकी और कितने है इम्तिहान

verse ~
मुकाम मांगे 100 प्रतिशत
आधा भी ना अभी तक
मैं ना कटिबद्ध है हां हकीक़त
जमाना पूछता है कीमत
है बस गनीमत कि स्याही अपनी
कागज कलम और लिखाई अपनी
ना ढाई आखर की चाह ही रखनी
लड़ाइयां ना वाहवाही रखनी
चौपाई जपनी बस रामचरित सी
दोहे दोहरे और जुबान त्वरित सी
बोली में भी जीजान तड़ित सी
कला की समझ से आवाम दरिद थी
ना आम गणित थी ना मैं रामानुज सा
ज़िंदगी के सिवा जाना कुछ ना
रिश्ता लगता ओसामा बुश सा
ढहे सपने ये जमाना खुश था

hook ~
बागी दौर कितने है इन से हाँ है
बाकी और कितने है इम्तिहान

verse ~
बैठे कितने उत्तीर्ण करके
मेरे से जीर्ण शीर्ण लड़के
माथे पे भी उत्कीर्ण डर थे
कि सपने घर ना विर्दीर्ण कर दे
अवतीर्ण कर दे कोई कल्कि कल ही
कला ना चलती चले बल्कि बल ही
फिसलके कल ही फिर तल के तल ही
गिरे हम अपने सम्बल के बल ही

hook ~
बागी दौर कितने है इन से हाँ है
बाकी और कितने है इम्तिहान ×2

◆◆◆ interlude ◆◆◆
~tv on
[ from the movie 3 iditots ]
~tv off
pressure cooker sounds on background

5. ~अजायब~घर~
(oye, seeti gin lio cooker ki mummy ne bola hai)

hook ~
दरवाजे दर्दो के नायब से
कमरों से किस्से कुछ गायब थे
दीवारे बांटे जो तन्हाई
लगता अब घर अजायब ये

verse ~
निकला हूँ सैर पे कितने सालों में
बंट गया खैर ये कितने पालो में
सब अपनी धुन में सिमटे बस तालों में
तड़पे खुशियां जो वक्त के जालो में
मकड़ी से सपने ये खाय रिश्ते हाँ
फिर भी रसोई में दिखते फरिश्ते यहाँ
आंखों ये आंसू छतों से रिसते ना
हम भी गुनाहों के गम में फिर पिसते ना
किश्ते हाँ कितनी बाकी कलेशों की
देना दलीले वो पुश्तैनी पेशों की
मेरे इन भेषो और बढ़ते केशों की
बाते सारी ये अब अवशेषों सी
उफनती जो चूल्हे पे दूध सी
बाते एक शख्स के भूत और वजूद की
वापसी की उसकी उम्मीद झूठ थी
करता था बाते वो यमदूत की
बचपन दिखता जो मुझे कबाड़े में
छोटे से आंगन और घर के बाड़े में
सिक्के अरमानों के कितने जहां गाड़े है
गम सारे मेरे दो के पहाड़े है
पिशाच ना दिखते अटारी में
ना खातिरदारी अब बीमारी में
ना गुल्लक अब सिक्को से भारी है
ना चादर में टांग पसारी है
अब टीवी पे नोबिता रोता ना
मैं दादी के किस्सों से सोता ना
वो गर्मी में पानी में गोता ना
मैं काश इन लम्हो को खोता ना
जलती चपाती सा मेरा अफ़सोस था
कैसे मैं चाहत के चूल्हे को कोसता
खैर तुम ना यूँ सैर पे चल देना
काफ़िर का कर्मो पे रोना तो रोज़ का

hook ~
दरवाजे दर्दो के नायब से
कमरों से किस्से कुछ गायब थे
दीवारे बांटे जो तन्हाई
लगता अब घर अजायब ये

6. ~उस पार~
~ tv on
sam: this is it
frodo: this is what?
sam: if i take one more step, i’ll be the farthest away from home i’ve ever been
frodo: come on, sam. remember what bilbo used to say:
“it’s a dangerous business, frodo, going out your door. you step onto the road, and if you don’t keep your feet, there’s no telling where you might be swept off to.”

[ from lord of the rings 2001 ]

【 kaafir in thoughts 】

ये जिंदगी का सफर एक झूठा फंसाना है
मैं वो राही हूँ जिसे दुनिया के उस पार जाना है

verse ~
उस पार जहां गम थोड़े कम से है
जहाँ झूठ और फरेब खत्म से है
उस पार जहाँ आइने भरम से है
जहाँ इंसानियत दिलो में जनम से है
उस पार आजार जार जार ना है
उस पार हर दिन इतवार सा है
उस पार कोई सोच से बीमार ना है
जहां सच ही सच को सँवारता है
उस पार जहां मजहब ही मकसद ना
उस पास मंदिर मस्जिद और मरघट ना
उस पार जहां मौत भी मरहब हां
सिर्फ लोगो को मतलब से मतलब ना
उस पार जहां हर गम का मरहम हाँ
जहां बोली में हर कोई सरगम सा
उस पार लाचारी का परचम ना
हर दामन में खुशियां जहां हरदम हाँ
उस पार जहां नफरत का नाम ना है
उस पार लगते औरत के दाम ना है
उस पार अंधेरा ना आम सा है
जेहन में ईर्ष्या और इंतकाम ना है
उस पार ये चाँद भी बेदाग सा है
कोई जन्नत और कोई भी दोजाख ना है
उस पार जहां नींद से ना भागना है
ना कोई किसी की याद में जहां जागता है

chorous ~
खुदा ये कैसा संसार हाँ
पूछे जमाना उस पार क्या

verse ~
उस पार मैं खुद को पहचानता हूँ
उस पार मैं रिश्तो को मानता हूँ
उस पार मैं ना अब गुमनाम सा हूं
जहाँ मैं हर दिन कुछ करने की ठानता हूँ
उस पार मेरी मेहनत भी जाया ना है
जहां जख्मो ने मुझे सताया ना है
सर पे बदकिस्मत होने का साया ना है
उस पार कोई अपना पराया ना है
जहां हाथों की लकीरें फिजूल सी है
जहाँ जनता ना फंदे पे झूलती है
उस पार जहां बातें भी फूल सी है
और दुनिया भी दर्दो को भूलती है
जरूरत जुनून जहां भाई से है
मेरे ख्वाब शून्य से दहाई पे है
जहाँ किस्से ना कानो में तबाही के है
हम जिंदगी के जिल्ल~ए~इलाही से है
उस पार ना दिलो में यूँ दूरियां है
ना झूठे वादे ना मजबूरियां है
किसी के सिर पे सवार मगरूरी ना है
जहाँ ना हीर गुलाब या कस्तूरी चाहे
जहां रांझा ना तड़पे तन्हाइयो में
पूरी चाहत फ़न से मनचाही होवें
वशीभूत धन से मन ना ही होवे
मिले हर सफर सुहाने भला राही जो मैं
बाट क्या ही जोहे मां अपने बेटों की
ना बंटी दुनिया हो श्वेतों अश्वेतों की
ना फसलों हो लाशों के खेतों की
जहां हर मन की सोच अद्वैत होती
जहां पत्थर को सोने से ईर्ष्या ना
जहां के स्वर्ग का हाल कश्मीर सा ना
ना हो मालूम गरीब और अमीर क्या हाँ
उजाला आस का हर रंग अबीर सा हाँ
जहां कर्ज मैं काफिर का उतार पाऊं
पन्ने पे ठहरे उपमा और अलंकार पाँउ
अफसोस सुबह वोही संसार पाँउ
ऐ खुदा ऐसे मैं कैसे उस पार जाऊं

chorous ~
खुदा ये कैसा संसार हाँ
पूछे जमाना उस पार क्या
खुदा ये कैसा संसार हाँ
मुझे तो जाना उस पार हाँ

7. ~शुक्रिया~
(dragging sounds )
marlon to trueman :
and the last thing i would ever do is lie to you, truman
i mean think it trueman
if everybody is in on it , i’d have to be on it too
(the irony of this dialgoue is that marlon is lying to him as he speaks, and these lines are fed to him by christof)

hook ~
भेजी जिन्होंने दुआओ की थी टुकड़ियां
सम्भाला मुझको किया मेरा सुख रिहा
मेरा ही रुख किया जिया जो दुःख भी हाँ
करू मैं हर एक इक शख्स का शुक्रिया × 2

verse ~
शुक्रिया जिसने गिरे के हाथ थामे
एक सिरे से दिन एक सिरे से थे रात थामे
जागा मेरी खातिर अश्को की दवात थामे
गिरने ना दिए आंसू टूटे जज्बात थामे
दिया हौसला और दी तालियां भी
खाई साथ मैं जमाने की ये गालियां भी
किसी से छीन के भरी अपनी थालियां नही
बैठे जिस पेड़ पे काटी उसकी डालियां नही
गिनाऊँ कितने अहसान इस सोच में हूँ
कहा ना thanks उस वक़्त इस अफसोस मैं हूँ
दिल से ठोस मैं हूँ ज़िंदगी बेलौस है यूँ
पत्तो से माटी में मिलने को निकली ओंस मैं हूँ
पर माटी किसी एक कि सगी कहा ये
हवा सी यादे मुझे फेंकती अभी कहां ये
एक सी भगी कहां ये नेक ज़िंदगी ना चाहें
देखती नमी कहां है रेवती जगी जहां ये
नैनो से अब सबर का बांध टूटे
पीछे जब कोई अपना सा इंसान छूटे
शुक्रिया खैर जो जताए ना अहसान झूठे
कितनो ने सोचा वरना कि बस इससे जान छूटे
आभार उनका भी जो पाले नफरते
वो सब बड़े जो छोटो की इज्जत रखे
सही गलत तके ना मेरा हक ढके
जो साथ साथ मेरे फर्श से फलक तक हैं

hook ~
भेजी जिन्होंने दुआओ की थी टुकड़ियां
सम्भाला मुझको किया मेरा सुख रिहा
मेरा ही रुख किया जिया जो दुःख भी हाँ
करू मैं हर एक इक शख्स का शुक्रिया

verse ~
माफ करना अगर लगूँ खुदगर्ज तो
एक गाने से कैसे उतारू कर्ज को
हूँ तबीब याद करना अगर कोई मर्ज हो
करना इक़तला मुझसे कोई हर्ज तो
सहर्ष हो हर सफर तय
हर किसी की शिकस्त और जफर तय
कोशिश से नियति जाय मगर ढह
हारके सीखा यही कि अपनी डगर रह
शंका अगर है आज भी काबिलियत पे
हाथ मिलाये कितनों ने थे बागी नीयत से।खड़े कुछ साथ खिलाफ बाकी निहत्थे
दो साल से जिनको हम दागी ही लगते
प्रतिभागी नही लगते जिन्हें हम आज भी
दुआ खुदा से एक दिन हो उनको नाज भी
मिटे नाराजगी वैर ना लगता लाजमी
आज नही तो कल आना मेरा ताराज भी
गिले शिकवे भूल के लगूँ गले बस
दिखे मंज़िल मैं भंगू चले बस
भलहू जले यश ना रखूं गले दस
आऊं पन्ने पे तो अलग हूँ सलेबस
ना लहू भले नस अमर पर गीत ये
कल का पता ना जाऊंगा आज जीत के
होंगे दुखी क्या तुम भी मेरे अतीत पे
या होगे प्रीत से खुश मेरी इस जीत पे
जरा सोच समझ के करना निर्णय
पास तुम्हारी उम्मीद की ही किरणें
घूमे रुधिर में सिर में यादे चिर हैं
काफिर को अपनाते ये मन मंदिर है

hook ~
भेजी जिन्होंने दुआओ की थी टुकड़ियां
सम्भाला मुझको किया मेरा सुख रिहा
मेरा ही रुख किया जिया जो दुःख भी हाँ
करू मैं हर एक इक शख्स का शुक्रिया

शुक्रिया सभी का


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