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lirik lagu dizlaw - ghulaam (romanized)

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[hook]
बातें तेरी
दिलाए मुझे आधी आज़ादी
निगाहें मिलाके
भुला दी तूने सारी ग़ुलामी

मैं सोचूँ दोबारा
तो मिले मेरे दिल को क़रार अब
हँसाते वो लम्हे
सजाते हैं वो यादें पुरानी

[verse 1]
मुसाफ़िर मैं तब का
जब देखा तुझे पहली ही बारी
नज़ाकत से भरपूर
तू जैसे राह में गुज़रता एक राही

डरावन सी मंज़र
जो दिखे न तू फिर से वहीं पर
घबराया ये लेखक

तो आ जा मेरे दिल के क़रीब ज़रा

[hook]
बातें तेरी
दिलाए मुझे आधी आज़ादी
निगाहें मिलाके
भुला दी तूने सारी ग़ुलामी
मैं सोचूँ दोबारा
तो मिले मेरे दिल को क़रार अब
हँसाते वो लम्हे
सजाते हैं वो यादें पुरानी

[verse 2]

क्यूँ है
उस ओर निगाह क्यूँ है

यूँ कह
ये दिल मुन्तज़िर है

ओ जानी
यम के द्वार अब खुल से रहे हैं

हूँ ज़िंदा
बची एक चाहत में

दुआ है ये
कि देखूँ तुझे फिर से दोबारा

दुआ है ये
करूँ सारे बातें अधूरी

दुआ है ये
ना मिलें फिर आँखें हमारी
दुआ है ये
कि बनूँ मैं तेरा ग़ुलाम अब

[hook]
बातें तेरी
दिलाए मुझे आधी आज़ादी
निगाहें मिलाके
भुला दी तूने सारी ग़ुलामी

मैं सोचूँ दोबारा
तो मिले मेरे दिल को क़रार अब
हँसाते वो लम्हे
सजाते हैं वो यादें पुरानी


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