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lirik lagu dikshant - intezaar

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[dikshant “intezaar” के बोल]

[verse 1]
सपना नहीं पर
आँखें ये तेरी दे जाती सुकूं
ख़ामोश आसमाँ
मांगू मैं जब दुआ और दुआओं में तू

[chorus]
ना समझा मैं कभी
दूर से देख के क्यों आँखें भरनी है
इंतज़ार करना तो
एकतरफा प्यार में सज़ा ही होती है
इंतज़ार करना तो
एकतरफा प्यार में सज़ा ही होती है

[verse 2]
ना पता क्यूँ आस थामेँ दिल संभल रहा
राब्ता तेरा मेरा ऐसे रहा
बेरंग यूँ बादल कोई मैं
शामों में जो घुल ना सका

[chorus]
ना समझा मैं कभी
दूर से देख के क्यों आँखें भरनी है
इंतज़ार करना तो
एकतरफा प्यार में सज़ा ही होती है
इंतज़ार करना तो
एकतरफा प्यार में सज़ा ही होती है


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