lirik lagu bhappa - sawaal
[chorus]
क्या माल को मैं फूंकता या माल मुझको फूंकता
सवाल जो मैं खुद से पूछता हूं
क्या आज जो मैं घिसता वो कल को है लिखता
सवाल जिससे थोड़ा जूझ रहा हूं
अब बाप नहीं है गुस्सा मैं काम करता खुद का
तो क्यों इतना खुद को कूटता हूं है
आज भी एक किस्सा पर बनते जा रहा
किस्सा वो है जिससे थोड़ा छूट रहा हूं
[verse 1]
जो भी सोचा मैंने होगा साला कभी नहीं जिंदगी दिखाती मुझे वही कई लगा यह दिखाती चीजें सही नहीं पता चला बनाती तो मुझे वही
कई गई मिली काफी जुबानी जो कभी रही नहीं मिले लोग जिनकी गुलामी नहीं कभी करी गई दिया दोष शायद कोई खामी जो मुझसे हटी नहीं मां की चूत मेरी लिखाई किसी से दबी नहीं
मैं थक चुका था दुनियादारी सबसे अब निभा के कभी खुल ही नहीं पाया अपनों के ही आगे अब तोड़ चुका हूं सारे फालतू लोगों से मैं नाते मैं जानता था कि जाना मेरे को ही था सबसे आगे
अब आधे~आधे खामखा में किए कसमें वादे कभी आगे नहीं पहुंचा हां में हां मिला के मैं आगे पहुंचा खामखा में वादे वो निभा अब हसने वाले हां में हां मिलाते मेरी बात में
[chorus]
क्या माल को मैं फूंकता या माल मुझको फूंकता
सवाल जो मैं खुद से पूछता हूं
क्या आज जो मैं घिसता वो कल को है लिखता
सवाल जिससे थोड़ा जूझ रहा हूं
अब बाप नहीं है गुस्सा मैं काम करता खुद का
तो क्यों इतना खुद को कूटता हूं है
आज भी एक किस्सा पर बनते जा रहा
किस्सा वो है जिससे थोड़ा छूट रहा हूं
[verse 2]
मेरे को मालूम मेरे सवालों का जवाब ये पैसा, पूसी, पावर, नशा, प्राइवेट विमान जब तक ये नहीं मिलती दारू पीते मिला के हम खो के बैठे होश पर ना भूले किए हम खुदा के
रात्रि भर के चौदम याद करते सुबह में फिर दिन भर करते आशा कि उस आदत को हम सुधार ले मेरी रानी आती नींद मेरी चुराने फिर वो नहीं जाती घर पे जब तक तलप मेरी सुला दे
पर पता नहीं कितनी बोतलों में जाके घुसता मैं और रुकता कि ये खाली शीशी दौड़ मेरी रुका दे पता नहीं कितने सुटे चलते मेरे सीने में और सोचूं कि ये चलती तीली आग मेरी बुझा दे
पर नहीं है मिलने वाला चैन जब तक आईने में जो बंदा खड़ा वो मुझसे नजरें थोड़ी मिला दे जब तक नहीं आने वाला वक्त ऐसा तब तक आगे बढ़ते रहता खुद को नई घड़ी गाड़ी दिला के
[chorus]
क्या माल को मैं फूंकता या माल मुझको फूंकता
सवाल जो मैं खुद से पूछता हूं
क्या आज जो मैं घिसता वो कल को है लिखता
सवाल जिससे थोड़ा जूझ रहा हूं
अब बाप नहीं है गुस्सा मैं काम करता खुद का
तो क्यों इतना खुद को कूटता हूं है
आज भी एक किस्सा पर बनते जा रहा
किस्सा वो है जिससे थोड़ा छूट रहा हूं
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