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lirik lagu arpit bala - champakali

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[intro]
एक हवा चली, महकी चंपाकली;
एक सोते शहर को क्यूँ उठा दिया?
वो जो कारीगरी तेरी, जो छुप ही गई—
क्यूँ ये पी के भी तुझको ना भूले जिया?

[bridge]
एक तारीख़ ऐसी, जो बस चुभे…
क्यूँ घुटन के क़ैदी को फ़ँसा~फ़ँसा दिया
फ़ँसा~फ़ँसा दिया?
ये घुटन से यूँ क़ैदी को फ़ँसा दिया।

[hook]
एक हवा चली, महकी चंपाकली;
एक सोते शहर को क्यूँ उठा दिया?
वो जो कारीगरी तेरी, जो छुप ही गई—
क्यूँ ये पी के भी तुझको ना भूले जिया?

[verse]
पर साल~दर~साल ये घुटन बढ़े
और जाम में महँगे जो दाम लगे।
चोरी~छुपे पिये—चुपके से चुरा लिया
और घुटन भी बिके, जो ब्याज पे।

हाँ, चुरा लिया—क्या ही गुनाह किया?
जो हल्के सुरूर ने बचा लिया।
तो हाँ, चुरा लिया—क्या ही गुनाह किया?
जो एक हल्के सुरूर ने बचा लिया।
[outro]
एक हवा चली, महकी चंपाकली;
एक सोते शहर को क्यूँ उठा दिया?
वो जो कारीगरी तेरी, जो छुप ही गई—
क्यूँ ये पी के भी तुझको ना भूले जिया?


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