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lirik lagu ani made it lit - antarman

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मुझे तुम पढ़ोगे क्या
पन्ना तो एक हूँ मैं
हजर ये ढूंढे गँवार
नालायक पर नेक हूँ मैं।।

मतलबी मुसीबतों में भी
मैं मुन्तज़िर बरकत का भी
अल्तमश में खुद पे हुए हमले का
तपिश में ढूंढूं खौलता रक्त जो ठंडा था
आत्मा ये रंग ढूंढे बहुत
बेरंग बैठी इसे अकेला होने से ख़ौफ़
फिर भी साथी न माँगती
जानती कि वो सिर्फ है दर्द देना जानती
दिल और मन में ठानती
होती रहती क्रांति
मैं सही या वो सही
परेखे कौन
ढूंढूं मैं तो शांति
आँखें मुझे आँकती
कौन सही है कौन सही
रहके मौन?
ढूंढूं क्या लिखूं मैं
पढ़ूं जो बनूं मैं
रहूं मैं कोनों में
हमज़ाद / नफ़स
फ़र्क़ क्या दोनों में
कसोफ की शामें भी मेरे मैखानों में
भरे अँधेरे और ताने तहखानों में
पता चलेगा जब जानोगे
छाँव नहीं गुफा, जलाओगे मुझे क्या?
शबरी मैं खट्टा, अपनाओगे मुझे क्या?
वक़्त का रवाँ, बहाओगे मुझे क्या?
गुहा (केवट) मैं, तराओगे मुझे क्या?
मुझे तुम पढ़ोगे क्या
पन्ना तो एक हूँ मैं
हज़ार ये ढूंढे गँवार
नालायक पर नेक हूँ मैं

पछतावो से पन्ने भारी है और पछतावा यही के साल भर से पन्ने खाली है
पन्ने पर लगे हुए ये अंधेरों के जाले है और
शब्द ये जो लिख रहा ये अंधेरों से आरे हैं
ये सच है, हा ये सच है के मैं आंखे अब चुराता हाँ
एक रात के बवाल पे मैं उसके दुखड़े गा रहा तबसे
हा मैं स्वार्थी ना ज़रा भी संकोच हो
ये आँखें आके नोच लो मैं आ गया दबोच लो
अब लागु शांत स्वभाव पर अब शांत रहा नहीं
ये पूरी रात दबाव में अब शांत बितानी
अपने थे साथ हा मैं उनके भी साथ रहा नहीं
तभी उन लोगों से अब रिश्ता भी कुछ खास रहा नहीं
अब टूटे ख्वाबों के मसान में मैं जान फूंकू
इस कलम से देख के ये मुर्दे मुस्कुराते है
और इस कलम में मैं तो सारी अपनी जान झोंके क्योंकि
इसके शब्दों से ही पन्ने खिलखिलाते ये
जानेमन मेरी मैं इस कला को जान देदू
मर मिटु पर सच लिखूं कलम को ये बयान देदू
मैं कल से काल था मै कल से कल संभालता
अक्ल से पर मशाल था मै ऐसा एक बयान देदू
बैठा मसान में यह मुर्दे बैठे ज्ञान देते
जान देते आज इनका बैठा पिंड दान देके
रात है थका मैं गिनते कितने तिनके ताज में थे
साथ मेरे मन के ये सवाल ठहरे गुम…..


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