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lirik lagu anama jatri & laezy - shikastagi (tribute edition)

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[intro]

ह्म्म… आ…
ह्म्म… आ… ओ…
ह्म्म… आ…..

[chorus]

वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?
वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?

[verse 1]

रात की बात करते हो क्या तुम?
जो भी कटती लम्हात~सिवा इंतेक़ाल में सो ये दिन
बे~दिन, बिन~चैन फ़क़त सी जो
हाय भरता जगह सास को यूं देता अभी
फ़िलहाल तनहा और बुज़दिल सा सोचे मुझे
कौन? बोलने की क्या ज़रूरत? वोह लोग ही दूजे
जुनून में कभी ग़म कभी दमखम भर
जाम गटके हज़्न~ओ~शिकस्तगी के ज़हर भूले
माना मेरी ही बुनी ख़्वाबों की ऊन में उलझा
पर सितम तेरे ग़ैरपने का न क्यों है गवारा?
चाह~बिन ही अब अनगिनत जहां भी आए
दिल को भीगाने शरबत~ए~उल्फ़त से और अब
न ठहरा हु, हु और अब न ही यह ठहरा रहेगा

[interlude]

आ.. ह्म्म… आ….. हो…
ह्म्म… आ… ह्म्म….

[verse 2]

ख़ताये, मलाल, फ़िज़ूल बनाई लफ़्ज़ों से
नज़्में भरू? या गवाही अब इन आहो से?
इतनी तन्हाई मार चुकी है यूं मुझे कि
मोहब्बत? इस अल्फ़ाज़ से गुज़ारिश है कि हो विदा मुझसे
लहू मेरे कितने बहे, कला सिर्फ गवाह बने
शहर को जो अपना माना
खैर, अपने ही सगे नहीं रहे
मालूम नहीं कि में था कैसे नखरे तेरे उठाता
हाल ऐसा कि इल्म~बिन ही इल्म वजूद को सताता
अब गिर~गिर ग़ुमान से फ़रमान तक भी न
ख़ारिज ऐसे दस्तख़त इल्तज़ा की मेरी कि
अब कोई नवाज़िशों से खुशामदीद भी करे तो फिर
नखरे, इश्क़बिमारी, मनाना वगैरह
रज़ामंद न हो मुझसे झेलना

[bridge]
क्यों? लम्हे ज़हन में बसाकर, क्यों?
क्यों? ग़म को ज़हन में छुपाकर, क्यों?
क्यों? क्यों? क्यों? क्यों? क्यों?
क्यों? पन्ने ज़हन के जलाकर, क्यों?
क्यों? क्यों? क्यों? क्यों?
क्यों आज?
कोसता हूं खुदको ही क्यों?
क्यों आज, कोसता हूं खुदको जो यूं ही क्यों?

[chorus]

फिर, वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?
वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?
वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?
वोह याद
याद आए दिन क्यों?
क्यों गए, उलझाए यूं
लम्हे ज़हन में बसाकर फिर क्यों?

[hook]

इंसान हमसे मिले ताकि नफ़र और वफ़ा मिले
बंद बैठे कमरे में, सपने में मंज़िलें
रक़ीब से था नाता तभी मुझे मिले जफ़ाये
हा, है मुमकिन सोहबत के फ़साने भूलाने, पर
फिर कौन ग़म से उभरे ग़म में डूब जाने पर?
किसी को समझूं क्या में, समझूं दिलकशी या गर्द?
कि अब में खुदसे ही जुदा कि जैसे दरबदर (दरबदर)
आवारा, भूला~बिसरा खिदमतों पे हंसता मर
क्यों अब ग़म से उभरे ग़म में डूब जाने पर?
ज़िम्मेदारियों के बोझतले आता जाता हूं, मगर
न जाने इनसे मुझे…
ख़ैर, छोड़ो।

[outro]

ह्म्म.. ह्म्म… म्मह्म्म….
म्मह्म्म… आ.. हा.. हा…
आ.. हा……


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