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lirik lagu amit mishra & neeti mohan – meer-e-kaarwan (from “lucknow central”)

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ओ. बन्देया ओ बन्देया.
ओ. बन्देया ओ बन्देया.
ओ. बन्देया ओ बन्देया

तेरी मंजिलें हुई गुमशुदा
फिर भी रास्ता है
तेरा मेहेरमां
ओ मीर-ऐ-कारवां
तेरी राहों पे रवां
की मेरे नसीबों में
हो कोई तो दुआ

ओ मीर-ऐ-कारवां
ले चल मुझे वहाँ
ये रात बने जहां सुबह
मीर-ऐ-कारवां
ओ मीर-ऐ-कारवां

बस कर दिल अब बस कर भी
उस राह मुझे जाना ही नही
पल दो पल का साथ सफर फिर
होगी जुदा रहगुज़र

नदिया थाम के जो बहते रहे
मिलते है वो किनारे कहाँ
ओ मीर-ऐ-कारवां
तेरी राहों पे रवां
के मेरे नसीबों में
हो कोई तो दुआ
ओ मीर-ऐ-कारवां
ले चल मुझे वहां
ये रात बने जहां सुबह
मीर-ऐ-कारवां
ओ मीर-ऐ-कारवां

बहार क्यों तेरे घर ना आती
है क्या भरम जो नज़र दिखाती
अब और कितनी ये रात बाकी
है रात बाकी ये रात बाकी
निगल ना जाये मुझे ये साये
गले में घुटती है सर्द आहे
बता ओ बंदे क्यों बात खाये क्यों बात खाये रे

हाँ लागे ना दिल अब
लागे नहीं मेरे पैरों तले
निकली जो ज़मीन
इस बस्ती में था मेरा घर
उसे किस की लगी फिर नज़र

वो जो सपनो का था काफिला
ऐसा झुलसा की अब है दुआं

ओ मीर-ऐ-कारवां
ले चल मुझे वहाँ
ये रात बने जहां सुबह
मीर-ऐ-कारवां

(चल अकेला राही
चल चल अकेला राही
हाफ़िज़ तेरा इलाही
हाफ़िज़ तेरा इलाही)


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