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lirik lagu akash kaushal & bharath - ghar hai kahan

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[akash kaushal “ghar hai kahan” के बोल]

[verse 1]
सपनों की है यही उड़ान, गिर ना जाऊँ कहीं
दूर तो जाना है बहुत, तारे होते वहीं
अंजाने शहरों में ही तो ढूँढ़ता ख़ुशी
कैसे~कैसे भरूँ मैं ख़ालिपन यही?

[chorus]
जहाँ सपने, घर है नहीं
जहाँ घर है, सपना कहाँ
मन ले आया है मुझको यहीं
फिर पूछे, “घर है कहाँ?”
जहाँ सपने, घर है नहीं
जहाँ घर है, सपना कहाँ
मन ले आया है मुझको यहीं
फिर पूछे, “घर है कहाँ?”

[verse 2]
मिलते हैं लोग तो बहुत, कोई अपना नहीं
ना पहचान है मुझे, हूँ नादान अभी
कर रहा हूँ याद अब गलियाँ सभी
कैसे~कैसे ढलूँ मैं दुनिया नई

[chorus]
माना होता जो लिखा वही
दुनिया से भी लड़ता वही
हो जहाँ, घर ले बना
ना पूछे, “घर है कहाँ?”
जहाँ सपने, घर है नहीं
जहाँ घर है, सपना कहाँ
मन ले आया है मुझको यहीं
फिर पूछे, “घर है कहाँ?”
[bridge]
रोता अकेला ना यहाँ, दीवारें संग
मैं देखूँ घड़ी बदलते वक़्त
खिड़कियों से आई जो गुज़र ये हवा
पोछ दे आँसू मेरे सब

[chorus]
दीवारों से रूठा मैं क्यों
इसमें उनका भी क्या है गुनाह
ना भटकता मन ये मेरा
ना पूछे, “घर है कहाँ?”
जहाँ सपने, घर है नहीं
जहाँ घर है, सपना कहाँ
मन ले आया है मुझको यहीं
फिर पूछे, “घर है कहाँ?”


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