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lirik lagu afkap - kasam

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[verse 1: afkap]
सच बोल ये आवाज़ सुनने को तुम भी तरसे ना
अभी खोल ना दरवाज़े हो रहे हैं मेरे चर्चे ना
तेरी ख़ामोशी को टूटने में लगने जो अरसे ना
अगर खुशी है कबूल तो ना ढूँढ मुझे
इन पर्दों के पीछे अभी
कैसे बताऊँ क्या हो रहा है क्योंकि अभी
tip tip बरे से ना पानी
चाँद से पूछा तुम क्यों आए अभी
उसने बोला ये तो होना ही था
क्यों जाने देते अपने साये नहीं
हाँ मैंना बोला शाम जब भी ढले
मुझे रात लंबी लगे
और कोहरा सा छाए तभी
तकिया जो सिर को
पर सोया नहीं जाए
क्योंकि कान बड़बड़ाते हैं तभी
वो बोले गए, ये एक रात में सटकती नहीं
ये किश्तों में कांड तुम करे गए
मिलाने जाते हाथ वो ही काटने चले गए
जो बड़े होते गए वो लाँघते चले गए
हाँ रखना है याद घर बार में पले गए
देखे माँ बाप जो आस में लगे रहे
बिछाने बैठे खाट और राख में चले गए
औलाद की औकात को नापते चले गए
दबाये अपने दर्द और पालते चलते गए
[verse 2: afkap]
तो bottlein टूटी यहाँ पे अभी आदतें गंदी हैं पकड़ी
करूँ आँखें बंद तो फिर लगे बला टली गई
और तू भी अभी
उसकी पलकें अब साफ कर
दिए तूने कष्ट अब उनका एहसास कर
वो भी तुझे घूरे कैसे आज
तू धुएँ में छुपाकर
कैसे ढूँढता है अपनी ये राह अब
बचपन
की यादें अब तस्वीरों में हैं कैद
तो फ़ासले बढ़े गए
गड़े हुए मुर्दे भी जान चिढ़कने लगे
जो खड़ी की दीवार तुम फाँदने चले गए
बताता नहीं
हूँ तकलीफ़ें
पर सच बोलूँ
तो उड़े मेरे
पर नहीं
उड़ी बस नींदें
और आँखें नहीं होती मेरी नम पर ठीक है
कलम ने मेरी बड़े कुएँ अभी सींचे हैं
बस घर ही आता खुशी के नसीब में
माँ का पहला visa लगा aad में मेरी
अब एक आस सी जगी है
और एक आग भी लगी है
आग भी लगी हैं


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